शोभना सम्मान - २०१३ समारोह

मंगलवार, 29 जुलाई 2014

कविता : मेरा स्वप्न


स्वप्न सदा ही देखा करती 
जब भी जन्म धरा पे पाऊँ 
क्षत्रिय कुल में बन क्षत्राणी 
गौरव क्षात्र धर्म का बढ़ाऊँ

स्वतंत्र जियूँ स्वतंत्र मरुँ 
स्वाभिमान की खातिर 
साहस से मैं नित्य लडूँ
बन रानी दुर्गावती सी निडर 
अपनी आन पे प्राण गवाऊं 
स्वप्न सदा ही देखा करती...

प्रेम और भक्ति भरूँ हृदय में 
जग के मोह से तरी रहूँ 
रानी मीरा सी भक्त बनी मैं 
कृष्ण भक्ति से भरी रहूँ ।
वसुंधरा में ज्योति प्रेम की
हर्षित मन से नित्य जगाऊं 
स्वप्न सदा ही देखा करती...

रानी पद्मिनी सा पावन मन ले
सबका मैं सम्मान करूँ
पतिव्रता धर्म की खातिर
हर जन्म मैं संग्राम करूँ
अपने सतीत्व की रक्षा करती
जौहर कर स्वाहा हो जाऊँ
स्वप्न सदा ही देखा करती...

माँ सीता सी आदर्श नारी बन
राम के हर दुःख में साथ रहूँ
उत्साह कभी कम होने न दूँ 
उनके संग हर कष्ट सहूँ 
सभी कलयुगी रावणों का 
फिर से मैं संहार करवाऊँ
स्वप्न सदा ही देखा करती...

अपने हृदय में वात्सल्य बसा
यशोदा मैया का रूप धरूँ
गोद खिलाऊँ कान्हा को फिर 
उसकी लीलाओं में खोई रहूँ
बनकर माँ कान्हा की  
सदा के लिए अमर हो जाऊँ
स्वप्न सदा ही देखा करती...

कलम चले न व्यर्थ कभी भी
मैं लेखन को समझूँ धर्म
लिखूँ सार्थक कुछ ऐसा मैं 
जिसमें हो सर्वहित का मर्म 
अपनी कलम से समाज की
कुरीतियों को मैं चोट पहुँचाऊँ 
स्वप्न सदा ही देखा करती...


लेखिका : संगीता सिंह तोमर

6 टिप्पणियाँ:

Unknown ने कहा…

बहोत अच्छे बहन।।।।। जय राजपुताना।।।।। जय क्षात्र धर्म

संगीता तोमर Sangeeta Tomar ने कहा…

धन्यवाद शिवा भैया.

Unknown ने कहा…

अत्यंत सुंदर रचना संगीता जी.

संगीता तोमर Sangeeta Tomar ने कहा…

धन्यवाद मोनिका जी..

Unknown ने कहा…

Bhut sunder rachna h Bhan jai rajputna jai Sri ram

संगीता तोमर Sangeeta Tomar ने कहा…

धन्यवाद अमित भाई जी.

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