शोभना सम्मान - २०१३ समारोह

शुक्रवार, 13 अप्रैल 2012

भ्रष्ट कौन (लघु कथा)




     स्कूल का पहला दिन. टीचर जी आराम से कक्षा में पधारीं. उन्होंने कक्षा में आए तीन नए बच्चों को देखा. उन्होंने उन बच्चों का परिचय लेना आरंभ किया. 
सबसे पहले आगे बैठी पिंकी से उन्होंने पूछा, "तुम्हारे पिता क्या करते है?"
पिंकी बोली,"जी मेरे पिता दूधिया है." 
टीचर जी बोलीं, "अच्छा तब तो दूध में आधा पानी मिलाकर बेचते होंगे." यह कहकर जोर से हँसीं.
फिर उन्होंने दूसरे बच्चे चिम्पू से उसके पिता के व्यवसाय के बारे में पूछा. 
"जी मेरे पिता जी की परचून की दुकान है." चिम्पू ने झेंपते हुए बताया. 
टीचर जी  बोली,"अच्छा तब तो सामान में मिलावट करके बेचते होंगे." और वह खिलखिलाकर हँस पड़ी. 
अब बारी थी बंटू की उसपर भी टीचर जी ने वही प्रश्न दाग दिया. 
बंटू रौब दिखाते हुए बोला,"मेरे पिता जी पुलिस में है."  
टीचर जी ने ठहाका लगाया और बंटू से बोलीं, " पुलिसवाले तो सबसे ज्यादा  भ्रष्ट और रिश्वतखोर होते है." 
उन तीनों बच्चों का भाग्य अच्छा था, जो टीचर जी की किसी सहेली का फोन आ गया और फोन पर फुर्सत से बतियाने के लिए स्टाफ रूम में चली गईं. तीनों बच्चे पूरा समय कक्षा में दुखी रहे. जब स्कूल की छुट्टी हुई, तो उन्होंने देखा उनकी  टीचर जी  सरकार द्वारा बच्चों के लिए भेजी गई शिक्षा सामग्री को चुपचाप बैग में भरकर चुपचाप अपने घर की ओर खिसकी जा रही थीं.

***चित्र गूगल बाबा से धन्यवाद सहित***

मंगलवार, 3 अप्रैल 2012

वरदान (लघु कथा)

    
    वीन अपने माता-पिता से मिलकर  अपनी गर्भवती पत्नी के साथ वृद्धाश्रम से वापस घर को चल दिया. उसके माता-पिता नम आँखों से अपने बेटे व बहू को जाते हुए देख रहे थे.व्यस्त दिनचर्या के कारण नवीन के पास अपने माता-पिता के लिए समय ही कहाँ बच पाता था सो महीने में एक बार उनकी खैर-खबर लेने या यूँ कहें कि माँ-बाप जिन्दा है या नहीं यह जानने के लिए वृद्धाश्रम की सैर करने पहुँच जाता था. नवीन और उसकी पत्नी कार में बैठे हुए अपने घर की ओर चले जा रहे थे. तभी नवीन की नज़र गाड़ी में स्थापित छोटी सी गणेश जी की प्रतिमा की ओर गई. वह हाथ जोड़कर मन ही मन प्रार्थना करने लगा "हे गणेश जी मुझे अपने जैसे ही आज्ञाकारी पुत्र का वरदान दें, जो अपने माँ-बाप की सेवा करे." नवीन गणेश जी का नाम जपते-जपते अपनी पत्नी के कंधे पर सिर रखकर सो गया.
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