शोभना सम्मान - २०१३ समारोह

शुक्रवार, 14 मार्च 2014

पछतावा (लघु कथा)

होली के त्यौहार में बस कुछ ही दिन बाकी थे. संजू और उसके दोस्त को इन दिनों शरारत सूझ रही थी.  वे दोनों ढेर सारे गुब्बारे ले आए और उनमें पानी भर-भरके चार मंजिला इमारत की छत से हर आते-जाते राहगीर को शिकार बनाते और जब कोई छत पर उन्हें पकड़ने के लिए आने की सोचता तो दोनों वहाँ से रफू-चक्कर हो जाते. जब भी उनके द्वारा ऊँचाई से मारा गया गुब्बारा किसी के बदन को छूता तो कुछ पल के लिए वह तिलमिलाकर रह जाता.  दो दिनों में ही उनके सारे गुब्बारे खत्म हो गए, लेकिन उनके भीतर की शरारत करने की इच्छा अभी खत्म नहीं हुई थी. अब उन्होंने घरों में खाली पड़ीं दूध की थैलियों का अपनी शरारत में इस्तेमाल करने का निश्चय किया. दूध की थैली को पानी से भरकर वे दोनों छत की ओट में छिपकर शिकार का इंतज़ार करने लगे. तभी एक महिला धीमी चाल में नीचे से गुज़री. जल्दबाजी में संजू ने निशाना साधकर पानी से भरी हुई दूध की थैली उसकी पीठ पर दे मारी. वह महिला चीख के साथ ज़मीन पर औंधे मुँह गिरी. आसपास लोगों की भीड़ लग गई. संजू और उसका दोस्त डर के मारे वहाँ से लापता हो गए. देर शाम को जब संजू अपने घर पहुँचा तो उसके घर के बाहर आस-पड़ोस के लोग इकठ्ठा हो रखे थे. वह घर के भीतर घुसा तो माँ के संग पूरे परिवार को रोते पाया. बाद में पता चला कि जिस महिला को उन्होंने पानी से भरी थैली मारी थी वह उसकी बड़ी दीदी थी. जब पानी की थैली उसकी दीदी की पीठ पर लगी तो वो पेट के बल गिर पड़ीं और उनकी हालत इतनी नाजुक हो गई कि हॉस्पिटल के  इमरजेंसी वार्ड में भर्ती करवाना पड़ा. जहाँ दीदी के पेट में गंभीर चोट आने के कारण मरा हुआ बच्चा पैदा हुआ. यह खबर पता चलते ही संजू की आँखों से आँसुओं का सागर बहने लगा. उसे अपनी द्वारा की गई शरारत के नाम पर की हुई गंभीर भूल पर पछतावा हो रहा था.


चित्र गूगल से साभार 
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