शोभना सम्मान - २०१३ समारोह

शुक्रवार, 22 जून 2012

जीवनदान (लघु कथा)



चित्र गूगल से साभार 

रितेश को अस्पताल में होश में आता है, तो देखता है  कि सामने एक युवक के साथ डॉक्टर खड़ा हुआ है. डॉक्टर रितेश  से उस युवक का परिचय करवाता है. "रितेश इससे मिलो यह विनय है.  अगर यह सही समय पर तुम्हें खून न देता तो शायद आज तुम जीवित न बचते." रितेश विनय को देखकर  चौंकता है, तो डॉक्टर उससे पूछता है,  "क्या तुम इसे जानते हो?"  रितेश  कहता है,  "हाँ! एक बार इसके भाई का एक्सिडेंट हुआ था उसकी हालत बहुत गंभीर थी. उसे खून की जरूरत थी. इसने मुझसे उसकी मदद करने के लिए कहा था पर मैंने साफ़ मना कर दिया था."  डॉक्टर ने आश्चर्य से पूछा, "तुमने खून देने से मना क्यों किया था?" रितेश  ने जबाव दिया, "मुझे लगा रक्तदान करने से मुझमें कमजोरी आ जायेगी."  डॉक्टर  उसे समझाकर कहता है, "रितेश रक्तदान करने से कमजोरी नहीं आती. हाँ इससे किसी को जीवनदान अवश्य मिलता है." रितेश ने कहा, "डॉ. साब शायद आप ठीक ही कह रहे हैं. इस बात को आज मैं अच्छी तरह समझ चुका हूँ. मुझसे भारी भूल हो गई थी, जो मैंने ज़रूरतमंद को समय पर खून नहीं दिया. अब मैं अपने सभी दोस्तों को रक्तदान के लिए प्रेरित करूँगा और स्वस्थ होते ही स्वयं भी नियम से रक्तदान किया करूँगा."







रविवार, 10 जून 2012

सुमित प्रताप सिंह ने डॉ. किरण बेदी को भेंट की दिल्ली गान की सी.डी.



  
 क
ल 9 जून, 2012 को डॉ. किरण बेदी ने अपना जन्मदिन दिल्ली के गुरुद्वारा बंगला साहिब में मनाया. उनके सभी सगे-सम्बन्धियों व शुभचिंतकों ने उन्हें जन्मदिन की शुभकामनाएँ दीं. इस अवसर पर डॉ. किरण बेदी के विशेष निमंत्रण पर पहुँचे दिल्ली गान के रचयिता सुमित प्रताप सिंह ने जन्मदिन शुभकामनाएँ देते हुए डॉ. किरण बेदी को ओउम् तथा दिल्ली गान की सी.डी. भेंट की.
डॉ. किरण बेदी जी को उनके जन्मदिन पर दिल्ली गान की सी.डी. व ओउम् भेंट करते हुए 
 सुमित प्रताप सिंह   
डॉ. किरण बेदी ने सुमित प्रताप सिंह को धन्यवाद दिया एवं दिल्ली गान लिखने के लिए उन्हें बहुत-बहुत बधाई दी.

मंगलवार, 5 जून 2012

सुमित प्रताप सिंह को मिला शब्द साधक सम्मान



बायें से श्री सुमित प्रताप सिंह, डॉ. हरीश अरोड़ा, श्री हवलदार सिंह शास्त्री एवं  आचार्य श्री कृष्णानंद वर्मा 

नई दिल्लीः लाल कला,सांस्कृतिक एवं सामाजिक चेतना मंच (रजि.) द्वारा विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर विश्व में बिगडते हुए पर्यावरण के संरक्षण में युवाओं की भूमिका पर एक चर्चा एवं काव्य गोष्ठी व सम्मान समारोह का आयोजन अल्फा शैक्षणिक संस्थान स्कूल रोड, मीठापुर में किया गया। जिसमें  वक्ता के रुप में डा. हरीश अरोडा प्रो. सान्ध्य डी.ए.वी. कालेज श्री निवासपुरी, नई दिल्ली एवं बल्लवगढ कालेज के पूर्व प्रो.(आचार्य) हवलदार सिंह शास्त्री ने भाग लिया।
पर्यावरण पर आधारित रचनाओं का काव्य पाठ भी किया गया, जिसमें भाग लेने वाले कवि थे-डा.ए.कीर्तिवर्धनश्री प्रदीप गर्ग पराग, पर्यावरणप्रेमी लाल बिहारी लाल, श्री प्रकाश लखानी,श्री एल.एन.गोसाई, श्री दीपक शर्मा कुल्लवी, श्री शिव कुमार ओझाश्री शिव कुमार प्रेमी, सुश्री महिमा श्रीमो. अब्दुल रहमान, श्री सुरेन्द्र साधक, श्रीमती रेखा रानी, श्री वीरेन्द्र  क़मर, श्री भुवनेश सिंघल, श्री भवानी शंकर शुक्ल इत्यादि। इसके अतिरिक्त श्री अर्श अमृतसरी के गज़ल संग्रह ज़िंदगी गज़ल है तथा लाल बिहारी लाल सहित अन्य दस कवियों की रचनाओं पर आधारित काव्य संग्रह “बस इसी एक आस में” का भी लोकार्पण किया गया।

इस कार्यक्रम के विशेष आकर्षण थे दिल्ली गान के रचयिता श्री सुमित प्रताप सिंह जिन्होंने दिल्ली गान को सुना कर वहाँ उपस्थित जनसमूह का मन मोह लिया  डॉ. हरीश अरोड़ा की गज़ल "बेटियाँ" को भी खूब वाहवाही मिली। इस अवसर पर सुमित प्रताप सिंह को लाल कला, सांस्कृतिक एवं सामाजिक चेतना मंच (रजि.) ने उनके द्वारा साहित्य सृजन में योगदान देने हेतु विशेष रूप से “शब्द साधक सम्मान” से सम्मानित किया। श्रीमति ममता श्रीवास्तव एवं श्री मोहन कुमार को भी क्रमशः सुर साधक सम्मान व स्वास्थ्य श्री सम्मान प्रदान किये गए। इस कार्यक्रम का संयोजन श्री लाल बिहारी लालअध्यक्षता आचार्य श्री कृष्णानन्द वर्मा तथा संचालन डा. कीर्तिवर्धन ने किया।

सोमवार, 4 जून 2012

फल (लघु-कथा)

   र्मा जी रोज की तरह अपनी बूढ़ी पत्नी के साथ सुबह की सैर पर निकले. चलते-चलते पुरानी यादों में खो गए. शर्मा जी को शादी के कई सालों तक संतान न होने से वह बिल्कुल  टूट चुके थे. मंदिर, मस्जिद,चर्च हो या फिर गुरुद्वारा कोई ऐसी जगह नहीं छोड़ी थी, जहाँ उन दोनों ने जाकर अपना सिर न पटका हो. आखिर एक दिन  उनकी मेहनत रंग लाई और उनके यहाँ एक  सुन्दर बेटा पैदा हुआ.
उस दिन कितने खुश थे वे दोनों. कितनी प्रार्थनाओं के बाद उन्हें उनका बेटा मिला था. उनकी प्रार्थना पूरी होने में चाहे काफी समय लगा हो, पर अब वे संतुष्ट थे. छोटे पद पर रहते हुए भी उन्होंने अपने बेटे को कोई कमी न रहने दी और उसे अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलवाई, ताकि वह अच्छे पद पर पहुँच सके. अपनी सारी जरूरतों पर अंकुश लगाकर उसकी हर इच्छा को पूरा किया. 
उनकी मेहनत सफल भी हुई और उनका बेटा उच्च सरकारी पद पर पहुँच गया. इसके बाद उसने चुपचाप दूसरे धर्म की लड़की से प्रेम-विवाह कर लिया, तब भी उन्होंने अपने बेटे का पूरा  साथ दिया. जीवन के हर फैसले में उन्होंने उसका समर्थन किया, केवल इसलिए कि उनका लाडला खुश रहे. 
एक दिन  माँ-बाप को  अपने इस लाड़-प्यार का फल  यह मिला, कि जीवन के अंतिम क्षणों में उनके लाडले ने उन्हें वृद्धाश्रम में जाकर पटक दिया. उनके बेटे को भी अपने कर्मों का फल मिला. उसकी शादी हुए कई साल बीत गये हैं, लेकिन उसकी पत्नी की कोख अभी तक सूनी है.
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