शोभना सम्मान - २०१३ समारोह

मंगलवार, 19 मार्च 2013

कविता: मुझे जन्म दो माँ




माँ सुन रही हो
तुम्हारी कोख से
मैं तुम्हारी बेटी बोल रही हूँ
मैं जन्म लेकर
इस संसार में आना चाहती हूँ
और पिता का मान
तुम्हारा अभिमान बनना चाहती हूँ
तुम्हारे आँगन में
अपनी नन्हीं पायलों का
गुंजन करना चाहती हूँ
किन्तु डरती हूँ कि कहीं
जन्म लेने से पहले ही
कोख में मार दी जाऊँ
और यदि जन्म लूँ तो कहीं
तुम्हारे लिए अमावस का चाँद बन
दुर्भाग्य ले आऊँ
या फिर पिता के लिए
चिंतारुपी चिता बन जाऊँ
किन्तु माँ तुम ही सोचो कि
यदि मेरी भांति कन्याओं को
कोख में यूं ही
मार दिया जाता रहा तो
बेटी, बहन, पत्नी माँ जैसे पवित्र रिश्ते
इस धरा पर रह पायेंगे क्या
और यदि नारी ही धरा से
विलुप्त हो गई तो
फिर मनु का वंश कैसे बचेगा
तो माँ अब निर्णय लो
और करो साहस
मुझे जन्म देने का
क्योंकि प्रकृति को नष्ट होने से
तुम अर्थात  नारी  ही बचा सकती है
तो मेरी पुकार सुनो और
मुझे जन्म दो माँ...
चित्र गूगल से साभार 
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