शोभना सम्मान - २०१३ समारोह

सोमवार, 29 अक्तूबर 2012

लघु कथा: नीयत

चित्र गूगल बाबा से साभार 


   यमराज के दरबार में यमदूतों द्वारा पृथ्वी से उठाए गए जीवों को चित्रगुप्त बारी-बारी से यमराज के सामने हाजिर कर रहे थे. 

जैसे ही राजेश का नंबर आया उसके उदास चेहरे को देख यमराज ने उसके दुःख का कारण पूछा, तो  वह बोला, "मैंने अपने जीवन में इतनी मेहनत की. अच्छी शिक्षा प्राप्त की और रूपए-पैसे की भी मेरे पास कोई कमी नहीं थी. फिर भी मैं अपने जीवन में उतना सफल नहीं हो पाया, जितना कि मेरा दोस्त मानस. कल रात भी जब हम दोनों साथ-साथ यात्रा कर रहे थे, तो कार दुर्घटना में मेरी तो मौत हो गई, लेकिन वह बाल-बाल बच गया."

यमराज मुस्कुराए और बोले, "हे जीव तुम अपनी आँखें बंद करो और स्वयं ही अपने आप से यह पूछो, कि ऐसा क्यों हुआ?

राजेश अपनी आँखें बंद करके मन ही मन सोचता है, "मैं मेहनती था, मानस भी मेहनती था. लगन मेरे भीतर थी, तो उसमें भी थी. हाँ समय-समय पर मैं उसकी राह में कांटे बोता गया और वह बिना कोई शिकायत किए अपनी मंजिल की ओर बढ़ता गया और कामयाबी पाता गया. मैंने उसके साथ बुरा किया, लेकिन उसने हमेशा मुझसे दोस्ती निभाई और मेरे साथ अच्छा व्यवहार ही किया." 

राजेश अपनी आँखें खोलता  है तो यमराज उससे मुस्कुराकर पूछते है, "कहो जीव कोई उत्तर मिला?" 

राजेश उदास होकर कहता है, "हां."

"क्या उत्तर मिला?" यमराज उससे फिर से पूछते हैं.

राजेश अपना सिर झुकाकर जवाब देता है, "असल में मेरी नीयत में ही खोट था."

लघुकथाकार- संगीता सिंह तोमर 

मंगलवार, 11 सितंबर 2012

चोर (लघु कथा)


चित्र गूगल बाबा से साभार
    ड्यूटी अफसर ने होमगार्ड को बुलाया और पूछा, “छज्जूमल हफ्ते भर से डी.ओ. रूम से लगातार पैन गायब होते जा रहे हैं, कहीं तू तो नहीं उठाकर ले जाता है”?
छज्जूमल ने अपनी आँखें नम करते हुए बोला, “साब चाहे जो इल्जाम लगाना पर चोरी का दोषी मत ठहराना”.
ड्यूटी अफसर कड़क आवाज में उससे बोला, “तो फिर पैन के क्या पंख लगे हुए थे, जो उड़कर कहीं और चले गए”?
होमगार्ड ड्यूटी अफसर की बात सुनकर मुस्कराते हुए बोला, “अरे साब मजाक अच्छा कर लेते हैं. एक बात कहूँ. कुछ दिनों से एक महिला टीचर अपने मोबाइल खोने की शिकायत लेकर आ रही हैं.कहीं वो ही तो...”
ड्यूटी अफसर ने छज्जूमल को डांटा, “चुपकर एक टीचर पर चोरी का इल्जाम लगाता है. टीचर को चोर बना दिया, कल मुझे ही चोर बना देगा. अब तेरी जिम्मेवारी है, तुझे कल तक पता लगाना है, कि पैन का चोर आखिर कौन है”?
छज्जूमल ड्यूटी के दौरान पूरे दिन चोर पकड़ने की तरकीब खोजता रहा.
अगले दिन महिला टीचर अपने खोए हुए मोबाइल फोन के बारे में ड्यूटी अफसर से पूछताछ करने फिर आईं और कम्प्लेंट लिखने के बाद ड्यूटी अफसर को देने के पश्चात जब जाने को हुई तो आदतानुसार डी. ओ. रूम में रखे पैन को अपने बैग में डालने लगीं, लेकिन इस बार उन्हें असफलता मिली. उन्होंने देखा, कि पैन एक धागे से बंधा हुआ है. ड्यूटी अफसर और छज्जूमल टीचर को देखकर खड़े-खड़े मुस्कुरा रहे थे. टीचर यह देखकर शरमा गईं और अपने भुलक्कड़ स्वभाव के लिए माफ़ी मांगकर उन्होंने अपने बैग की जाँच की, तो उसमें उन्हें डी.ओ. रूम से भूल से रखे पैन मिल गए. उन्होंने उन सभी पैनों को अपने बैग से निकालकर ड्यूटी अफसर को वापस कर दिए.
ड्यूटी अफसर ने महिला टीचर के जाने के बाद छज्जूमल की पीठ ठोंकते हुए कहा, “शाबाश छज्जूमल तूने आखिर चोर को खोज ही लिया”. 


शुक्रवार, 17 अगस्त 2012

पुण्य (लघु कथा)

***चित्र गूगल बाबा से साभार*** 

     नेहा सुबह की सैर के लिए घर से निकली, तो उसने रास्ते में देखा की सविता आंटी झुग्गियों के गरीब बच्चों को लड्डू बांट रहीं थीं. नेहा ने उनसे पूछा,"आंटी आज कोई खास बात है, जो आज इन बच्चों को मिठाई खिलाई जा रही है?" सविता आंटी ने मुस्कराते हुए कहा, "अरे बेटी कोई खास बात नहीं है. घर में रखे-रखे इन लड्डुओं में बदबू आनी शुरू हो गई थी. मुझे लगा, कि अगर घर में  बच्चों ने इन्हें खा लिया, तो बीमार पड़ जाएँगे. अब इन झुग्गी-झोपड़ी के बच्चों को तो गन्दा-संदा सब हजम हो जाता है. मैंने सोचा, कि इन लड्डुओं को इन्हें ही बांट दूँ. कम से कम इस बहाने कुछ पुण्य तो मिल जाएगा."

गुरुवार, 2 अगस्त 2012

एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो




आप सभी ने हिन्दी के प्रसिद्द गज़लकार दुष्यंत कुमार का मशहूर शेर तो सुना ही होगा- 

कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता
एक  पत्थर तो  तबियत से  उछालो   यारो II

इसी शेर की दूसरी पंक्ति ( मिसरा -ए- सानी ) “एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो” को अपनी पुस्तक का शीर्षक प्रदानकर  डॉ.रवि शर्मा ‘मधुप’ ने सकारात्मक दृष्टिकोण से परिपूर्ण एक प्रेरणादायी पुस्तक को लेखबद्ध किया है. इस पुस्तक मे कुल 27 लेख संकलित हैं. युवाकाल मानव का स्वर्णिमकाल  होता है. इस काल में किए गए प्रयास हमारे जीवन की दिशा निर्धारित कर देते है. आज समाज में साहित्य की बाढ़ आई हुई है, जिसमे से अच्छे साहित्य को चुनने के लिए असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, क्योंकि अधिकतर साहित्य के नाम पर अश्लीलता परोसते है, जिस कारण युवा वर्ग की दिग्भ्रमित होने की आशंका उत्पन्न हो सकती है. ऐसे में अच्छी पुस्तकों को पढ़ना हमारे व्यक्तित्व विकास के लिए बहुत ही जरूरी है. लेखक ने इस पुस्तक के माध्यम से युवावर्ग का उचित मार्गदर्शन किया है. इस पुस्तक के माध्यम से लेखक ने भ्रमित, निराश युवा वर्ग के अंदर आशावादी सोच के संचार द्वारा उनके संपूर्ण व्यक्तित्व के विकास को चाहा है.
मानव जीवन में प्रत्येक व्यक्ति का सामना आशा व निराशा के क्षणों से होता है. कुछ ही व्यक्ति ऐसे होते है जो विपरीत परिस्थितियों में भी आशावाद का दामन नहीं छोड़ते, अधिकतर व्यक्ति ऐसे समय में अपने घुटने टेक देते है व निराशा के घोर अंधकार में चले जाते है. यदि मानव अंधकार की ओर ही रहता रहेगा तो वह उजाले की तरफ कैसे जा सकता है. लेखक ने स्पष्ट किया है की बाल्यवस्था हमारे जीवन का वह समय होता है, जब हमारे जीवन की नींव बनती है. यदि इस दौरान अच्छी आदतों को विकसित कर लिया जाये तो वे आगे भी सदैव रहती है जैसे समय का महत्व आदि.
किशोरावस्था मानव के जीवन का वह समय होता है जिसमें थोड़ी भी असावधानी अग्रिम भविष्य के लिए खतरा हो सकती है. इस अवस्था में किशोरों में पूर्ण रूप से परिपक्वता नहीं आती है. ऐसे में किशोरों के अभिभावकों व अध्यापकों से प्रेम व सहयोग की आवश्यकता होती हैं और यदि उन्हें यह मिले तो उनका भविष्य उज्जवल हो उठता है.
युवावस्था एक ऐसा नाजुक दौर होता है जहाँ से भविष्य के लिए दो मार्ग निकलते है, एक परिश्रम का तथा दूसरा सरल मार्ग. अधिकतर युवा दूसरा चुनते है जिसका परिणाम होता है असफल, कुंठित व निराशवादी जीवन. जिसके कारण वे हिंसा, नशा व अपराध की ओर रुख कर जाते है.
आज के किशोरों व युवा के सामने अनेक समस्याएं है जैसे परीक्षा, रैगिंग, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, प्रेम व पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव इत्यादि. लेखक ने इनपर विस्तार से चर्चा की है व इनसे निपटने के उपाय भी बताए हैं.
हमारे जीवन में संघर्ष का विशेष महत्व है जो भी अपने पूर्ण सामर्थ्य से संघर्ष करता है उसे सफलता अवश्य मिलती है. लेखक ने वाणी के महत्व पर भी बल दिया है, क्योंकि  मानव की उन्नति में वाणी का महत्वपूर्ण स्थान होता है उसके व्यवहार, विचार, शिष्टाचार को उसकी वाणी के द्वारा ही पहचाना जा सकता है.
आज पूरे विश्व में  33  करोड़ 70 लाख अंग्रेजी भाषियों की तुलना में हिन्दी भाषी 33 करोड़  72 लाख  72 हजार है (स्रोत - राजभाषा भारती, स्वर्ण जयंती अंक) अर्थात चीनी के बाद हिन्दी दूसरे स्थान पर है व अंग्रेजी तीसरे स्थान पर और डॉ. जयंती प्रसाद नौटियाल ने अपने वर्षों के शोध से विश्वस्तर पर भाषा प्रयोक्ताओं के आंकड़े जुटाकर यह सिद्ध कर दिया है, कि यदि हिन्दी  भाषियों की संख्या में उर्दू भाषियों को भी सम्मिलित कर दे तो वे चीनी भाषियों से गिनती में ज्यादा हो जाते है यानि हमारी हिन्दी संसार के पहले स्थान पर है. हिन्दी का शब्द-भंडार अंग्रेजी सहित विश्व की किसी भी भाषा से ज्यादा समृद्ध है, क्योंकि हिन्दी की जननी संस्कृत की एक-एक धातु से सैकड़ों नए शब्दों का निर्माण हो सकता है. हमारी हिन्दी भारत की राजभाषा, राष्ट्रभाषा और संपर्क भाषा तो है  ही अब संसार की भाषा बनने की ओर भी अग्रसर है.
पुस्तक में प्रारंभ से अंत तक विभिन्न - विभिन्न विषयों पर लेख रुचिपूर्ण जान पढ़ते है. लेखक ने ह्रदय को छू लेने वाली भाषा का प्रयोग किया है. लेखन में बीच-बीच में कविताओं की प्रेरक पंक्तियों से लेख और भी सशक्त व जानदार बन पड़े है. यह पुस्तक युवावर्ग के लिए एक अच्छी व मार्गदर्शक सिद्ध हो सकती है. असली लेखक तो वही होता है जो समाज के हित के लिए लिख सके और डॉ. रवि शर्मा ‘मधुप’ जी ने इस पुस्तक के माध्यम से यह कार्य किया है. उन्हें यह पुस्तक लिखने के लिए साधुवाद.

समीक्षाकार- संगीता सिंह तोमर 

पुस्तक का नाम- एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो

पुस्तक के लेखक- डॉ. रवि शर्मा 'मधुप', संपर्क- 09811036140

पुस्तक का मूल्य- 200/- रुपये 

प्रकाशक- गौरव बुक्स 
        के- 4/19, गली नं. 5,
        वैस्ट घौंडा, दिल्ली- 110053

सोमवार, 16 जुलाई 2012

समीक्षा : इस रात की सुबह कब होगी?




       इस रात की सुबह कब होगी? नामक उपन्यास के लेखक सुरेन्द्र 'पीलवान' ने पाठकों के समक्ष एक आश्चर्य से भरी हुई कहानी प्रस्तुत की है. प्रत्येक मनुष्य इस संसार में विचित्र अनुभवों के दौर से कभी न कभी गुजरता ही है. कहानी का मुख्य पात्र अशोक जो कि अपने गुरु व ईश्वर के प्रति गहरी श्रद्धा रखता है. जब उसका विचित्र अनुभवों से सामना होता है तो उसका विश्वास डगमगाने लगता है. अन्य पात्र रजनी जो कि अशोक की पत्नी है कहीं न कहीं मन को प्रभावित करती है. अशोक ईश्वर की कृपा प्राप्त करने के लिए सत्संगों का सहारा लेता है, वहीं रजनी गुरु की भक्ति से ज्यादा कर्म की प्रधानता पर बल देती है, वह भारतीय नारी के आदर्शों को मन में संजोये हुए, हर तरह की मुसीबत में अपने पति का तन-मन से सहयोग करती है. दूसरी ओर उपन्यास की अन्य पात्र चित्रलेखा जोकि अशोक की धर्म की बहन है सत्संग भजन कीर्तन में मग्न रहती है. उसकी भक्ति के नाटक के पीछे उसका व्याभिचारी रूप सहसा आश्चर्य में डाल देता है, कि किस प्रकार कुछ विक्षिप्त मानसिकता के लोग समाज में सीधा बनने के लिए भक्ति का ढोंग करते है.
अशोक का सपना है कि उसका भी अपना एक घर हो जब वह घर बनवाता है तो छोटी-मोटी  हर एक बात का ध्यान रखता है कि उसके घर में कोई भी अशुभ-अमंगल न हो. वह अपने परिवार के साथ वहां रहने लगता है व सारे शुभ कार्य पूजा-पाठ करवाता है, ताकि उसका परिवार इस घर में सुख-चैन का जीवन बिता सके किन्तु फिर भी उसके घर में विपदाओं का पहाड़ टूट पड़ता है. वह और उसका परिवार शैतानी शक्तियों के चंगुल में धीरे-धीरे फंसते जाते है. अशोक के मन-मस्तिष्क पर यह शक्तियाँ अपना अधिकार जमा लेती है. अशोक अपनी समस्या का समाधान पाने के लिए संत-सन्यासियों, तांत्रिकों-ज्योतिषियों, मुल्ला-मौलवियों व सूफियों इत्यादि के पास भटकता है पर हर तरफ से उसे निराशा ही हाथ लगती है. सब ऐसी परिस्थिति में डूबते को सहारा देने की बजाय उससे रूपए ऐंठते है. धीरे-धीरे उसका ईश्वर व अपने सत्संगी गुरु से विश्वास उठ जाता है. अब वह अपनी अन्तरआत्मा को ही अपना सच्चा गुरु, रक्षक व हितैषी मानने लगता है. धीमे-धीमे उसकी आर्थिक स्थिति भी जबाव देने लग जाती है. आखिरकार हारकर उसे अपने परिवार के हित के लिए अपने पुराने मकान में वापस लौटना पड़ता है. 
उपन्यास में शुरू से लेकर आखिर तक लेखक ने रोचकता बनाए रखी है. लेखक ने इस उपन्यास के माध्यम से संत सन्यासियों, तांत्रिकों-ज्योतिषियों, मुल्ला-मौलवियों व सूफियों आदि की पोल खोली है जो लोगों को मूर्ख बनाकर समस्या का समाधान करने का आश्वासन देकर रूपए ऐंठते हैं. साधक जी का यह पहला उपन्यास है और मेरे अनुसार वह  अपने लेखन में काफी सफल रहे है. इस उपन्यास में नीरसता का बिल्कुल अभाव है और रोचकता आरंभ से अंत तक बनी रहती है. किन्तु उपन्यास में एक कमी खटकती है कि उपन्यास का अंत अधूरा सा लगता है. हो सकता है कि लेखक का इस उपन्यास का दूसरा भाग लाने का विचार हो. यदि ऐसा है तो दूसरा भाग पढ़ने की उत्सुकता व प्रतीक्षा रहेगी.  

समीक्षाकार- संगीता सिंह तोमर 

पुस्तक का नाम - इस रात की सुबह कब होगी 
प्रकाशक - पूनम प्रकाशन 
        6- बी, गली नं. 1,
        कौशिक पुरी, पुराना सीलमपुर,
        दिल्ली - 110031
पुस्तक का मूल्य - 225/- रुपये

मंगलवार, 3 जुलाई 2012

सुमित प्रताप सिंह हुए आर्य रत्न से सम्मानित





   श्री निवासपुरी,दिल्ली में दिनाँक- 30.06.2012 को आयोजित एक कार्यक्रम में युवा कवि, लघुकथाकार, व्यंग्यकार व दिल्ली गान के लेखक सुमित प्रताप सिंह को आर्य ट्रस्ट ने आर्य रत्न सम्मान-2012 से सम्मानित किया. इस अवसर पर सुमित प्रताप सिंह ने अपनी व्यंग्य रचनाओं का पाठ किया व दिल्ली गान सुनाकर वहाँ उपस्थित जनसमूह का मन मोह लिया. आर्य ट्रस्ट के चेयरमैन व ट्रस्टी वेद प्रकाश शास्त्री ने सुमित प्रताप सिंह को दिल्ली  की विशेषताएं समेटे हुए दिल्ली गान लिखने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद दिया.उन्होंने कहा कि दिल्ली गान को सुनने के बाद उन्हें यह अहसास होता है कि वह इतने सुंदर शहर में रह रहे है. उन्होंने सुमित प्रताप सिंह को ऐसी ही शानदार रचनायें लिखते रहने के लिए शुभकामनायें दी. इस अवसर पर बी.के.सिंह, गोपी कान्त डे, प्रेम चंद कुकरेजा ,प्रवीन झा, विपिन छाबड़ा, बॉबी कुमार व अन्य लोग उपस्थित थे.
भेदी नज़र, सोमवार, 2 जुलाई, 2012

शुक्रवार, 22 जून 2012

जीवनदान (लघु कथा)



चित्र गूगल से साभार 

रितेश को अस्पताल में होश में आता है, तो देखता है  कि सामने एक युवक के साथ डॉक्टर खड़ा हुआ है. डॉक्टर रितेश  से उस युवक का परिचय करवाता है. "रितेश इससे मिलो यह विनय है.  अगर यह सही समय पर तुम्हें खून न देता तो शायद आज तुम जीवित न बचते." रितेश विनय को देखकर  चौंकता है, तो डॉक्टर उससे पूछता है,  "क्या तुम इसे जानते हो?"  रितेश  कहता है,  "हाँ! एक बार इसके भाई का एक्सिडेंट हुआ था उसकी हालत बहुत गंभीर थी. उसे खून की जरूरत थी. इसने मुझसे उसकी मदद करने के लिए कहा था पर मैंने साफ़ मना कर दिया था."  डॉक्टर ने आश्चर्य से पूछा, "तुमने खून देने से मना क्यों किया था?" रितेश  ने जबाव दिया, "मुझे लगा रक्तदान करने से मुझमें कमजोरी आ जायेगी."  डॉक्टर  उसे समझाकर कहता है, "रितेश रक्तदान करने से कमजोरी नहीं आती. हाँ इससे किसी को जीवनदान अवश्य मिलता है." रितेश ने कहा, "डॉ. साब शायद आप ठीक ही कह रहे हैं. इस बात को आज मैं अच्छी तरह समझ चुका हूँ. मुझसे भारी भूल हो गई थी, जो मैंने ज़रूरतमंद को समय पर खून नहीं दिया. अब मैं अपने सभी दोस्तों को रक्तदान के लिए प्रेरित करूँगा और स्वस्थ होते ही स्वयं भी नियम से रक्तदान किया करूँगा."







रविवार, 10 जून 2012

सुमित प्रताप सिंह ने डॉ. किरण बेदी को भेंट की दिल्ली गान की सी.डी.



  
 क
ल 9 जून, 2012 को डॉ. किरण बेदी ने अपना जन्मदिन दिल्ली के गुरुद्वारा बंगला साहिब में मनाया. उनके सभी सगे-सम्बन्धियों व शुभचिंतकों ने उन्हें जन्मदिन की शुभकामनाएँ दीं. इस अवसर पर डॉ. किरण बेदी के विशेष निमंत्रण पर पहुँचे दिल्ली गान के रचयिता सुमित प्रताप सिंह ने जन्मदिन शुभकामनाएँ देते हुए डॉ. किरण बेदी को ओउम् तथा दिल्ली गान की सी.डी. भेंट की.
डॉ. किरण बेदी जी को उनके जन्मदिन पर दिल्ली गान की सी.डी. व ओउम् भेंट करते हुए 
 सुमित प्रताप सिंह   
डॉ. किरण बेदी ने सुमित प्रताप सिंह को धन्यवाद दिया एवं दिल्ली गान लिखने के लिए उन्हें बहुत-बहुत बधाई दी.

मंगलवार, 5 जून 2012

सुमित प्रताप सिंह को मिला शब्द साधक सम्मान



बायें से श्री सुमित प्रताप सिंह, डॉ. हरीश अरोड़ा, श्री हवलदार सिंह शास्त्री एवं  आचार्य श्री कृष्णानंद वर्मा 

नई दिल्लीः लाल कला,सांस्कृतिक एवं सामाजिक चेतना मंच (रजि.) द्वारा विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर विश्व में बिगडते हुए पर्यावरण के संरक्षण में युवाओं की भूमिका पर एक चर्चा एवं काव्य गोष्ठी व सम्मान समारोह का आयोजन अल्फा शैक्षणिक संस्थान स्कूल रोड, मीठापुर में किया गया। जिसमें  वक्ता के रुप में डा. हरीश अरोडा प्रो. सान्ध्य डी.ए.वी. कालेज श्री निवासपुरी, नई दिल्ली एवं बल्लवगढ कालेज के पूर्व प्रो.(आचार्य) हवलदार सिंह शास्त्री ने भाग लिया।
पर्यावरण पर आधारित रचनाओं का काव्य पाठ भी किया गया, जिसमें भाग लेने वाले कवि थे-डा.ए.कीर्तिवर्धनश्री प्रदीप गर्ग पराग, पर्यावरणप्रेमी लाल बिहारी लाल, श्री प्रकाश लखानी,श्री एल.एन.गोसाई, श्री दीपक शर्मा कुल्लवी, श्री शिव कुमार ओझाश्री शिव कुमार प्रेमी, सुश्री महिमा श्रीमो. अब्दुल रहमान, श्री सुरेन्द्र साधक, श्रीमती रेखा रानी, श्री वीरेन्द्र  क़मर, श्री भुवनेश सिंघल, श्री भवानी शंकर शुक्ल इत्यादि। इसके अतिरिक्त श्री अर्श अमृतसरी के गज़ल संग्रह ज़िंदगी गज़ल है तथा लाल बिहारी लाल सहित अन्य दस कवियों की रचनाओं पर आधारित काव्य संग्रह “बस इसी एक आस में” का भी लोकार्पण किया गया।

इस कार्यक्रम के विशेष आकर्षण थे दिल्ली गान के रचयिता श्री सुमित प्रताप सिंह जिन्होंने दिल्ली गान को सुना कर वहाँ उपस्थित जनसमूह का मन मोह लिया  डॉ. हरीश अरोड़ा की गज़ल "बेटियाँ" को भी खूब वाहवाही मिली। इस अवसर पर सुमित प्रताप सिंह को लाल कला, सांस्कृतिक एवं सामाजिक चेतना मंच (रजि.) ने उनके द्वारा साहित्य सृजन में योगदान देने हेतु विशेष रूप से “शब्द साधक सम्मान” से सम्मानित किया। श्रीमति ममता श्रीवास्तव एवं श्री मोहन कुमार को भी क्रमशः सुर साधक सम्मान व स्वास्थ्य श्री सम्मान प्रदान किये गए। इस कार्यक्रम का संयोजन श्री लाल बिहारी लालअध्यक्षता आचार्य श्री कृष्णानन्द वर्मा तथा संचालन डा. कीर्तिवर्धन ने किया।

सोमवार, 4 जून 2012

फल (लघु-कथा)

   र्मा जी रोज की तरह अपनी बूढ़ी पत्नी के साथ सुबह की सैर पर निकले. चलते-चलते पुरानी यादों में खो गए. शर्मा जी को शादी के कई सालों तक संतान न होने से वह बिल्कुल  टूट चुके थे. मंदिर, मस्जिद,चर्च हो या फिर गुरुद्वारा कोई ऐसी जगह नहीं छोड़ी थी, जहाँ उन दोनों ने जाकर अपना सिर न पटका हो. आखिर एक दिन  उनकी मेहनत रंग लाई और उनके यहाँ एक  सुन्दर बेटा पैदा हुआ.
उस दिन कितने खुश थे वे दोनों. कितनी प्रार्थनाओं के बाद उन्हें उनका बेटा मिला था. उनकी प्रार्थना पूरी होने में चाहे काफी समय लगा हो, पर अब वे संतुष्ट थे. छोटे पद पर रहते हुए भी उन्होंने अपने बेटे को कोई कमी न रहने दी और उसे अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलवाई, ताकि वह अच्छे पद पर पहुँच सके. अपनी सारी जरूरतों पर अंकुश लगाकर उसकी हर इच्छा को पूरा किया. 
उनकी मेहनत सफल भी हुई और उनका बेटा उच्च सरकारी पद पर पहुँच गया. इसके बाद उसने चुपचाप दूसरे धर्म की लड़की से प्रेम-विवाह कर लिया, तब भी उन्होंने अपने बेटे का पूरा  साथ दिया. जीवन के हर फैसले में उन्होंने उसका समर्थन किया, केवल इसलिए कि उनका लाडला खुश रहे. 
एक दिन  माँ-बाप को  अपने इस लाड़-प्यार का फल  यह मिला, कि जीवन के अंतिम क्षणों में उनके लाडले ने उन्हें वृद्धाश्रम में जाकर पटक दिया. उनके बेटे को भी अपने कर्मों का फल मिला. उसकी शादी हुए कई साल बीत गये हैं, लेकिन उसकी पत्नी की कोख अभी तक सूनी है.

सोमवार, 28 मई 2012

राष्ट्र भक्त वीर विनायक दामोदर सावरकर जी की जयंती पर उन्हें शत शत नमन!


(28 मई 1883 -26 फरवरी 1966)
तुजसांठी मरण ते जनन,तुजवीण जनन ते मरण!
हे मातृभूमि!तेरे लिए मरना ही जीना है और तुझे भूल कर जीना ही मरना है!


जिस प्रकार एक भारतीय नाटक के सभी पात्र-मृत और जीवित भी,एक समय अंत में मिलते हैं,उसी तरह इस संघर्ष नाटक के हम सभी असंख्य पात्र भी कभी इतिहास के रंगमंच पर अवश्य मिलेंगे.तब तक के लिए मित्रो!विदा!विदा!!मेरी लाश कहीं भी गिरे,चाहे अंडमान की अंधेरी कालकोठरी में अथवा गंगा की पवित्र धारा में,वह हमारे संघर्ष को प्रगति ही देगी.युद्ध में लड़ना और गिर पड़ना भी एक प्रकार की विजय है. अत:प्यारे मित्रो! विदा!
-स्वातंत्र्यवीर सावरकर 

सोमवार, 21 मई 2012

नव्या पत्रिका का हुआ लोकार्पण



    दिनांक 19 मई,2012 को दिल्ली में स्थित हिन्दी भवन (निकट आई .टी.ओ.) में गुजरात की हिन्दी त्रैमासिक पत्रिका नव्या का लोकार्पण किया गया. 


इस कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री महेश चंद शर्मा ने की. मुख्य अतिथि थे संगीत नाटक अकादमी की गृहपत्रिका संगना के संपादक श्री प्रयाग शुक्ल. अध्यक्ष व मुख्य अथिति संग श्री पंकज त्रिवेदी (प्रबंध संपादक-नव्या), श्रीमती शीला डोंगरे (संपादिका-नव्या), श्री  ए.कीर्तिवर्धन, श्री अवधेश कुमार सिंह व दिल्ली गान के रचयिता श्री सुमित प्रताप सिंह मंच को शुशोभित कर रहे थे. 


मंच संचालन का कार्यभार संभाला नव्या की सहसंपादिका श्री स्वाति नलावड़े ने. कार्यक्रम का आरंभ दीप प्रज्ज्वलन से हुआ. सभी मंचासीन अतिथियों को पुष्प गुच्छ व भेंट देकर सम्मानित किया गया. इसके पश्चात सुश्री ऐश्वर्या लाहिरी ने नृत्य प्रस्तुत किया. इस अवसर पर सभी ने अपने-अपने वक्तव्य दिए. श्री पंकज त्रिवेदी एवं श्रीमति शीला डोंगरे ने नव्या के उद्देश्य व भविष्य पर अपने विचार रखे. श्री अवधेश कुमार सिंह ने रबीन्द्रनाथ टैगोर पर विशेष आलेख पढ़ा व श्री सुमित प्रताप सिंह ने नव्या से जुड़े अपने अनुभव बताये व दिल्ली गान को गाकर सुनाया. श्री ए. कीर्तिवर्धन ने नव्या के संबंध में अपने विचार व सुझाव रखे. श्री दर्पण मजूमदार ने रबीन्द्र पाठ किया. कार्यक्रम के मुख्य अथिति श्री प्रयाग शुक्ल ने रबीन्द्र नाथ टैगोर के विषय में गहन चर्चा की व उनसे सम्बंधित कविताओं का पाठ किया. अध्यक्ष श्री महेश चंद शर्मा ने ने भी अपने विचार प्रस्तुत किये व नव्या को अपने भरपूर सहयोग देने का वचन भी दिया. कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन श्री फज़ल इमाम मल्लिक ने प्रस्तुत किया. 




इस प्रकार श्रीमति स्वाति नलावडे के सफल संचालन में कार्यक्रम समाप्त हुआ.




इस विशेष अवसर पर सभागार में डॉ. हरीश अरोरा, श्री सुभाष नीरव, श्रीमति पूनम माटिया, श्रीमति जैनी शबनम, श्रीमति सरिता भाटिया, श्री अनिल पराशर, श्री बलराम अग्रवाल, श्री संतोष त्रिवेदी, श्री अविनाश वाचस्पति, श्री लाल बिहारी लाल, श्री शाहनवाज सिद्दीकी, श्री शैलेश भारतवासी, सुश्री गुंज झाझरिया व श्री दीपक कुमार इत्यादि प्रसिद्द ब्लॉगर, लेखक व साहित्यकार उपस्थित थे.

प्रस्तुति- संगीता सिंह तोमर, 
             प्रतिनिधि-नव्या पत्रिका (दिल्ली) 


शनिवार, 5 मई 2012

संस्कृति (लघु कथा)



     पने पिता जी के साथ नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर वेटिंग रूम में होम टाऊन जाने के लिए ट्रेन की प्रतीक्षा कर रही थी. पिता जी ट्रेन के आने के निश्चित समय का पता लगाने के लिए इंक्वारी रूम की ओर चले गए. अकेलेपन को दूर करने के लिए सामने बैठी महिला से बतियाने का मन किया, जो देखने में काफी सभ्य सी लग रही थी व दो छोटी लड़कियों, जिनकी उम्र लगभग 10-11 वर्ष के लगभग थी, के साथ बैठी हुई थी.
उनसे बातचीत का सिलसिला चला, तो उन्होंने बताया, "मेरे पति अमेरिका में डॉक्टर हैं. मैं अमेरिका से भारत रहने आई हूँ और अपनी दोनों बेटियों के साथ अपने शहर लखनऊ जा रही हूँ, अब वहीं इन दोनों की आगे की पढ़ाई होगी." 
मैंने उनसे आश्चर्य से पूछा, "भारतीय तो शिक्षा ग्रहण के लिए विदेश जा रहे है और आप अपनी बच्चियों को लेकर अमेरिका से भारत वापस आ गईं?" 
वो बोलीं, "पाश्चात्य संस्कृति बहुत ही उन्मुक्तापूर्ण है. मैं चाहती हूँ कि मेरी बेटियाँ अपनी महान भारतीय संस्कृति में पलें-बढ़ें."
तभी अचानक एक अर्ध-नग्न कन्या पारदर्शी वस्त्र धारण किए उनकी सीट के सामने आकर खड़ी हो गई और बोली "एक्सक्यूज मी मेम! वुड यू प्लीज़ मूव अ विट? आइ हैव टू सिट हियर."
उस कन्या को देखकर उनके मुख से अनायास ही ये शब्द निकल पड़े, "हे भगवान अब मैं अपनी बच्चियों को लेकर भारत से भला और कहाँ जाऊँ?"
***चित्र गूगल बाबा से साभार***

गुरुवार, 3 मई 2012

लाल कला मंच द्वारा सम्मान एवं लोकार्पण समारोह सम्पन्न


पुस्तक "कुछ तो बाकी रह गया" का विमोचन 

   दिल्ली हिन्दी साहित्य सम्मेलन के तत्वावधान में कुँवर विक्रमादित्य सिंह द्वारा रचित काव्य संग्रह "कुछ तो बाकी रह गया" का लोकार्पण पद्मभूषण गोपाल दास नीरजडॉ. नामवर सिंह एवं श्री किशोर उपाधायाय द्वारा संयुक्त रुप से किया गया। लाल कला मंच द्वारा इसकी अध्यक्षा श्रीमती सोनू गुप्ता एवं अतिथियों द्वारा श्री कुँवर विक्रमादित्य सिहं को इनकी कृति कुछ तो बाकी रह गया के लिए शब्द साधक सम्मान एवं डा. ए.कीर्तिवर्धन को हिन्दी सेवा के अमूल्य धरोहर कृति जतन से ओढ़ी चदरिया के संपादन के लिए इन्हें भी शब्द-साधक सम्मान से अतिथियों एवं लाल कला मंच के सचिव श्री लाल बिहारी लाल द्वारा सम्मानित किया गया। इन्हें सम्मान स्वरुप अंग वस्त्र,1100 रुपये नकद,सम्मान पत्र व पदक प्रदान किया गया। 
डॉ. ए. कीर्तिवर्धन सम्मान ग्रहण करते हुए 
   समारोह का आयोजन हिन्दी भवन,आई.टी.ओ.,नई दिल्ली में संपन्न हुआ जिसकी अध्यक्षता
आकाशवाणी दिल्ली के केन्द्र निदेशक श्री लक्ष्मी शंकर बाजपेयी ने की. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डा. नामवर सिंह नवोदित कवियों के इसके गुण धर्म पर ध्यान देने एवं छन्दों पर भी पकड होने की बात कही तथा पद्मभूषण गोपालदास नीरज ने आशीर्वचन के साथ-साथ अपनी दो चार कवितायें भी सुनाई। सानिध्य दिल्ली के पूर्व महापौर श्री महेश चन्द्र शर्मा तथा हिन्दी त्रैमासिक- सरस्वती सुमन(देहरादून)के प्रधान संपादक डॉ. आनन्द सुमन सिंह का था तथा काव्य संकलन कुछ तो बाकी रह गया” पर परिचर्चा में मुख्य वक्ता के रुप में आकाशवाणी दिल्ली के कार्यक्रम अधिकारी डॉ. हरि सिंह पाल एवं राष्ट्र
किंकर के संपादक डा. विनोद बब्बर ने भाग लिया। इस कार्यक्रम का संचालन डॉ. ए. कीर्तिवर्धन ने किया।
    इस अवसर पर राजधानी दिल्ली से प्रकाशित द्विमासिक पत्रिका हम सब साथ-साथ” द्वारा देश के दर्जनों साहित्यकारो को कार्यकारी संपादक श्री किशोर श्रीवास्तव एवं अतिथियों द्वारा सम्मानित किया गया।

प्रस्तुति- संगीता सिंह तोमर
ई-1/4, डिफेन्स कालोनी पुलिस फ्लैट्स,
नई दिल्ली- 110049

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