शोभना सम्मान - २०१३ समारोह

मंगलवार, 3 जनवरी 2012

छी! कुत्ते के माँस के मोमो



कल आपकी कलम घिस्सी यानि कि मैं अपनी कलम को घिस रही थी कि तभी मेरे पापा ड्यूटी से आए और बोले, "तुझे मोमो खाना बहुत पसंद है न. आज मैंने दो नार्थ ईस्ट लड़कों को पकड़ा है जो कि कुत्ते, भैंसे और सुअर के माँस के मोमो बेचते थे
 (कलम घिस्सी के पापा पुलिसमैन  है). 

मैंने कहा, "लेकिन पापा मैं तो वेज मोमो खाती हूँ." तब वह बोले, " बेवकूफ वेज मोमो हो या नॉन वेज बनाये  तो एक ही बर्तन में जाते हैं." 

उनकी बात सुनकर ऐसा मन किया कि बाथरूम में जाकर खूब ऊल्टी करूँ और अभी तक जितने भी मोमो खाए हैं सब के सब एक साथ बाहर निकाल  दूँ.

आज से मोमो खाना बंद. 

18 टिप्पणियाँ:

vandana gupta ने कहा…

काश ये बात सबको समझ आ जाये

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

Dimag lagaker padenge to samajhh aa hi jayegi. Kalamghissi ke warrant bhi zari hone wale hain, sare momoz banane wale case jo ker denge ki unke pat par kitni zor ki laat mari hai.

Vikas Sadh ने कहा…

pata nahi kaha kaha tak y dharm bharast karege.......

sangita ने कहा…

अच्छी व् सन्देश प्रसारक पोस्ट है |

इन्दु पुरी ने कहा…

kai deshon me kutte ka maans khaya jata hai babu!suar aur bhainse ka maans bharat me bhi khoob khaya jata hai.ghin na karo.galat baat bs itni hai ki veg ho ya nonveg bechne wale ko yh sb bechne se pahle apne grahkon ko spsht bta dena chahiye.jiska mn maane wo khaye jiska na maane wo na khaye.isliyeupset na ho.
yh shukr manao ki apne fayede ke liye yh manav ka maans pka kr nhi khilaate.wrna yh krne se bhi nhi hichkichayenge log.
smjhi meri nanhi doll!

विनोद पाराशर ने कहा…

अनजाने में तो हम पता नहीं,क्या क्या खा जाते हॆं? हां जब पता लग ही गया तो नहीं खाना चाहिए.अच्छी बात.इसी तरह कलम घिसती रहो,एक न एक दिन तुम्हारी कलम जरुर रंग लायेगी.शुभकामनाएं!

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

वाह विनोद भाई
कलम को घिसने पर
जब निकलेंगे रंग
तो जरूर अद्भुत ही होंगे
अभी तो मानस के रंग
चमत्‍कृत कर रहे हैं
कलम के रंग
न किन किनके
चेहरे के रंग बदल देंगे।

Sumit Pratap Singh ने कहा…

चलो इस बहाने कलम घिस्सी बहना का मोमो खाने का शौक तो मिटा... :)

Padma Rani ने कहा…

"छी! कुत्ते के मांस के मोमो" I cann't agree to you for this. How it is possible

पद्म सिंह ने कहा…

ये तो खाने की बात थी... अगर समझ मे आ जाये कि कुछ लोग सोचते कैसे हैं तो कई बार उल्टी आ जाएगी... इन्सान से नीचे फिर इन्सान ही गिर सकता है। गर्मियों मे लाशघर से बरफ की सिल्लियाँ पानी की ट्रॉली मे डाल कर पानी पिलाने के मामले भी सामने आए हैं। मुंबई का गोलगप्पा कांड तो याद ही होगा... और अंजाने कितने ही और गुल खिलते होंगे

अमित वर्मा ने कहा…

बड़ा ही सुन्दर और सारभौमिक संदेश छुपा है इसमे

Dhairya Pratap Sikarwar ने कहा…

मुझे भी मोमोज बिलकुल पसंद नहीं है...
पर इस रहस्योद्घाटन के लिए आप प्रसंशा के योग्य है...बहुत अच्छा

MOHAN KUMAR ने कहा…

oh god.

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

पता नही लोग मांस कसे खा लेते है,
WELCOME to--काव्यान्जलि--जिन्दगीं--

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

are waah ye bat hai.

Rajput ने कहा…

मोमो ? नो नो
अच्छी पोस्ट , नया साल मुबारक हो

संगीता तोमर Sangeeta Tomar ने कहा…

मेरी पोस्ट को पढने के लिए आप सभी का धन्यवाद .लोहड़ी तथा मकर-सक्रांत की हार्दिक शुभकामनायें.

A1 Hearing Aid Centre ने कहा…

momo mujhe bahut pasand hai lekin yah padkar lagta hai soch samajhkar khana chahiye :)

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