मैंने उन्हें रोककर पूछा, "चाचा इतनी जल्दी में कहा जा रहे हो?"
वह बोले, "अरे बेटी यह गाय बूढ़ी हो गई है जाने कब ऊपर चली जाए. अगर यह खूँटे पर ही मर गई तो पाप चढ़ेगा. सोच रहा हूँ कि बाजार में जाकर बेच दूँ."
मैं मन ही मन सोचने लगी, "अगर खूँटे पर इनकी गाय मर गई तो इन्हें पाप लगेगा और बाजार में इनकी गाय को खरीदकर जब कसाई काटेगा तो क्या इन्हें पुण्य मिलेगा?"
***चित्र गूगल से साभार***
***चित्र गूगल से साभार***
उफ़ ………सत्य को उकेरती बेहद संवेदनशील लघुकथा।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद .....ऐसी घटनाएं अक्सर भारत के कई गाँवों में देखी जा सकती है पूरे जीवन गाय माता की सेवा ली जाती है और जब उन्हें बुढ़ापें पर सेवा देने का समय आता है तो पाप-पुण्य की विचारधारा मन में लाकर उन्हें बाजार में बेंच दिया जाता है.
हटाएंदर्दनाक और शर्मनाक.....
जवाब देंहटाएंपवन अंकल क्या बोलूँ?
हटाएंसोचने वाली बात है
जवाब देंहटाएंबेचारे जीव घर के न घाट के :(
सिर्फ सोचने से क्या होगा?
हटाएंचाचा अपने नसीब को टाँगे ले जा रहे थे !
जवाब देंहटाएंसंतोष अंकल नसीब को या फिर पाप को?
हटाएंnice story. keep it up kalam ghissi sister.
जवाब देंहटाएंTHANKS BROTHER.
जवाब देंहटाएंपाप या पुण्य पाने का एक दुर्लभ मौका
जवाब देंहटाएंइसी को मार देते हैं सब समझ कर सुनहरी मौका
मानवता को शर्मसार करने से
हैवानियत को भला कब किसने रोका
और किसी के रोकने से कौन कब रूका है
पुण्य तो नहीं पाप के सामने सिर
शर्म से कभी नहीं झुका है
ऐसे शैतान हैं हम
कान की बंद दुकान हैं हम।
धन्यवाद अविनाश अंकल! मेरी रचना को पढ़ने व इतनी सुन्दर कविता के लिए.
जवाब देंहटाएंउस अनपढ का विश्वास ऐसा है, इसीलिये वह ऐसा करता है। उसको हम कैसे दोषी ठहरा सकते है।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद vasantha जी.....
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