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सोमवार, 16 जनवरी 2012

पाप या पुण्य (लघु कथा)


चाचा राम खिलाड़ी अपनी बूढ़ी गाय को बुरी तरह खींचते हुए भागे जा रहे थे.
मैंने उन्हें रोककर पूछा, "चाचा इतनी जल्दी में कहा जा रहे हो?"
वह बोले, "अरे बेटी यह गाय बूढ़ी हो गई है जाने कब ऊपर चली जाए. अगर यह खूँटे पर ही मर गई तो पाप चढ़ेगा. सोच रहा हूँ कि बाजार में जाकर बेच दूँ."
मैं मन ही मन सोचने लगी, "अगर खूँटे पर इनकी गाय मर गई तो इन्हें पाप लगेगा और बाजार में इनकी गाय को खरीदकर जब कसाई काटेगा तो क्या इन्हें पुण्य मिलेगा?"

***चित्र गूगल से साभार***

14 टिप्‍पणियां:

  1. उफ़ ………सत्य को उकेरती बेहद संवेदनशील लघुकथा।

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    1. मेरी रचना पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद .....ऐसी घटनाएं अक्सर भारत के कई गाँवों में देखी जा सकती है पूरे जीवन गाय माता की सेवा ली जाती है और जब उन्हें बुढ़ापें पर सेवा देने का समय आता है तो पाप-पुण्य की विचारधारा मन में लाकर उन्हें बाजार में बेंच दिया जाता है.

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  2. सोचने वाली बात है
    बेचारे जीव घर के न घाट के :(

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  3. चाचा अपने नसीब को टाँगे ले जा रहे थे !

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  4. पाप या पुण्‍य पाने का एक दुर्लभ मौका
    इसी को मार देते हैं सब समझ कर सुनहरी मौका
    मानवता को शर्मसार करने से
    हैवानियत को भला कब किसने रोका
    और किसी के रोकने से कौन कब रूका है
    पुण्‍य तो नहीं पाप के सामने सिर
    शर्म से कभी नहीं झुका है
    ऐसे शैतान हैं हम
    कान की बंद दुकान हैं हम।

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  5. धन्यवाद अविनाश अंकल! मेरी रचना को पढ़ने व इतनी सुन्दर कविता के लिए.

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  6. उस अनपढ का विश्वास ऐसा है, इसीलिये वह ऐसा करता है। उसको हम कैसे दोषी ठहरा सकते है।

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