शर्मा जी रोज की तरह अपनी बूढ़ी पत्नी के साथ सुबह की सैर पर निकले. चलते-चलते पुरानी यादों में खो गए. शर्मा जी को शादी के कई सालों तक संतान न होने से वह बिल्कुल टूट चुके थे. मंदिर, मस्जिद,चर्च हो या फिर गुरुद्वारा कोई ऐसी जगह नहीं छोड़ी थी, जहाँ उन दोनों ने जाकर अपना सिर न पटका हो. आखिर एक दिन उनकी मेहनत रंग लाई और उनके यहाँ एक सुन्दर बेटा पैदा हुआ.
उस दिन कितने खुश थे वे दोनों. कितनी प्रार्थनाओं के बाद उन्हें उनका बेटा मिला था. उनकी प्रार्थना पूरी होने में चाहे काफी समय लगा हो, पर अब वे संतुष्ट थे. छोटे पद पर रहते हुए भी उन्होंने अपने बेटे को कोई कमी न रहने दी और उसे अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलवाई, ताकि वह अच्छे पद पर पहुँच सके. अपनी सारी जरूरतों पर अंकुश लगाकर उसकी हर इच्छा को पूरा किया.
उनकी मेहनत सफल भी हुई और उनका बेटा उच्च सरकारी पद पर पहुँच गया. इसके बाद उसने चुपचाप दूसरे धर्म की लड़की से प्रेम-विवाह कर लिया, तब भी उन्होंने अपने बेटे का पूरा साथ दिया. जीवन के हर फैसले में उन्होंने उसका समर्थन किया, केवल इसलिए कि उनका लाडला खुश रहे.
एक दिन माँ-बाप को अपने इस लाड़-प्यार का फल यह मिला, कि जीवन के अंतिम क्षणों में उनके लाडले ने उन्हें वृद्धाश्रम में जाकर पटक दिया. उनके बेटे को भी अपने कर्मों का फल मिला. उसकी शादी हुए कई साल बीत गये हैं, लेकिन उसकी पत्नी की कोख अभी तक सूनी है.