एक दिन अंतर्मन में
उठी एक इच्छा कि
पूछूँ प्रभु से
एक छोटा सा प्रश्न कि
क्यों मेरी भक्ति के बदले
देते हो प्रभु
उलझनें, परेशानियां और
संघर्ष से भरा ये जीवन
अचानक ही अंतर्मन में
गूँजी किसी की मधुर ध्वनि
लगा कि जैसे
प्रभु कह रहे हों कि
जो संतान होती है
मुझे अति प्रिय
लेता हूँ उसकी परीक्षा
उसे संघर्ष भरे जीवन से
तपाकर बना डालता हूँ
बिलकुल खरा सोना
मेरी संतान होने का
मिलना चाहिए
इतना तो सौभाग्य उसे
यह सुनते ही
मेरे अंतर्मन ने
किया हर्षनाद
और प्रभु द्वारा प्रदत्त
उस सौभाग्य को
सहर्ष स्वीकार किया।
लेखिका : संगीता सिंह तोमर
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