( मेरी यह पहली कहानी समर्पित है मेरी आदरणीया अध्यापिका को जिन्होंने विकलांग होते हुए भी जीवन का रण जीत लिया.)
मल्होत्रा जी की पत्नी गर्भ से थी. उनके दो बच्चे एक बेटा रवि और एक बेटी रूपा थे. अब अपनी तीसरी संतान के आगमन को लेकर दोनों ही बहुत उत्साहित थे. एक दिन उनके घर में एक प्यारी सी बच्ची का जन्म हुआ. बच्ची देखने में बहुत सुंदर थी, लेकिन बेचारी हाथ और पैरों से अपाहिज थी. उसके माता-पिता ने जब यह देखा, तो बहुत व्यथित हो गये. आखिरकार उन दोनों ने इसे ईश्वर की मर्जी मान अपने-अपने मन को किसी तरह समझा लिया.
कन्या के भोले से मासूम चेहरे को देखकर उसे नाम दिया गया सुमन. माता-पिता के लाड़-प्यार में सुमन का पालन-पोषण होने लगा. सुमन को जहाँ अपने माता-पिता का भरपूर प्यार मिलता, तो वहीं अपने भाई और बहन का दुर्व्यवहार. कई बार तो इस वजह से वह हीन भावना से ग्रस्त हो मानसिक रूप से बहुत परेशान हो जाती थी. जिस उम्र में बच्चों के भीतर शैतानी और चंचलता भरी होती है उस उम्र में उसके स्वभाव में गंभीरता का वास हो गया. अब सुमन का अधिकांश समय किताबों के साथ ही बीतने लगा था. उसके भीतर पढ़ने-लिखने की लगन भरी हुई थी. वह सदैव अपनी हर कक्षा में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होती थी. स्कूल की टीचर भी उसकी तारीफ़ करते न थकती थी. अपनी मेहनत के बल पर उसने अच्छी शिक्षा प्राप्त कर एक सरकारी स्कूल में शिक्षिका की नौकरी भी पा ली.
समय बीतता गया और एक मनहूस दिन आया और सुमन के सिर से उसके माँ-बाप का साया उठ गया. उसके भाई-बहन का विवाह हो गया और वे दोनों अपने-अपने गृहस्थ जीवन में व्यस्त हो गये. सुमन के लिए उसके भाई-बहन के मन में अभी तक कोई प्रेमभाव की भावना उत्पन्न नहीं हो पाई थी. उसके साथ उनका पहले जैसा व्यवहार जारी था. सुमन को घर में घुटन महसूस होने लगी. अब तो माता-पिता का भी स्नेह नहीं था, जिसके सहारे वह यह सब सहन करती रहती. आखिरकार एक दिन उसने निश्चय किया और उसने हमेशा के लिए अपना घर छोड़ दिया और महिला हॉस्टल में जाकर रहने लगी. सुमन के अंतर्मन पर अपनों द्वारा किए गए बुरे बर्ताव का ऐसा प्रभाव पड़ा, कि उसका व्यवहार बहुत ही रुखा हो गया. जिसे अक्सर स्कूल के बच्चों को मार के रूप में झेलना पड़ता था. स्कूल के बच्चे उसे दूर से देखकर ही डर से सहम जाते थे.
सुमन मानसिक रूप से बहुत दृढ थी. उससे प्रभावित होकर एक दिन उसके सहशिक्षक ने उसके समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा. एक पल के लिए तो वह हैरान हो गई. उनके इस प्रस्ताव पर उसके मन में कई दिनों तक उधेड़-बुन रही, कि एक विकलांग महिला और एक शरीर से सामान्य पुरुष का विवाह क्या सफल हो पायेगा? सहशिक्षक के पुनः आग्रह पर आखिर में सुमन ने प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया. एक शुभ दिन आया और उन दोनों का विवाह संपन्न हुआ. सुमन का अपने पति संग जीवन सुखमय बीतने लगा. अब उसके व्यवहार में भी बहुत परिवर्तन आ चुका था. अब वह स्कूल के बच्चों से स्नेह करने लगी थी और स्कूल के बच्चों की चहेती शिक्षक बन चुकी थी. सुमन के चेहरे पर अब निराशा नहीं, बल्कि मुस्कान रहती थी, लेकिन उसके मन-मस्तिष्क में एक शंका सदैव रहती, कि कहीं उसकी होने वाली संतान उसकी भांति अपाहिज पैदा न हो.
आख़िरकार शुभ घड़ी आई और सुमन के घर एक बालिका ने जन्म लिया. बच्ची शारीरिक रूप से हष्ट-पुष्ट थी. आजकल सुमन अपनी बेटी के लालन-पालन में मस्त रहती है. अब वह अपने जीवन से संतुष्ट है और उसे लगता है कि उसने इस जीवन का रण आखिर जीत ही लिया.
*चित्र गूगल से साभार*