मेरे पड़ोस के घसीटालाल जी के बेटे की जब शादी हुई तो पूरे मोहल्ले में शोर मच गया. शोर मचता भी क्यों नहीं उनके बेटे की शादी में दहेज़ जो इतना अधिक मिला था. घसीटालाल जी ख़ुशी के मारे फूले नहीं समा रहे थे. हर किसी से वह यही कहते कि मेरी बहु तो लक्ष्मी का रूप है और वह अपने साथ ढेर सारी लक्ष्मी लेकर आई है .समय बीता उनकी बेटी भी जवान हुई और उन्होंने अपनी बेटी के लिए सुयोग्य वर खोजना आरंभ कर दिया. एक दिन उनसे अचानक मुलाकात हो गई वह काफी दुःखी दीख रहे थे. मैने उनसे उनके दुःख का कारण जानना चाहा तो उन्होंने बताया, "बेटी मै अपनी बेटी के लिए काफी समय से लड़का खोज रहा हूँ लेकिन जहां भी जाता हूँ लड़केवाले दहेज़ के लिए मुंह फाड़ने लगते हैं." मैंने उनसे कहा, "अंकल जी जहां तक मैंने सुना है कि आपने तो अपने बेटे की शादी में जमकर दहेज़ लिया था फिर दहेज़ देने में भला आपत्ति क्यों?" वह गंभीर होकर बोले, "बेटी वह मेरी भूल थी अब मैं उस भूल को सुधारना चाहता हूँ." उनकी इस बात को सुनकर ऐसा मन किया कि उनके चरण छू कर बोलूँ, "अंकल जी धन्य हैं आप और धन्य हैं आपके विचार."
व्यंग्य: भक्षक बनाम रक्षक पुलिस
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* मा*र्केट में एक कथित जिम्मेदार माँ से जब अपने बच्चे की शरारतों का बोझ
न संभाला गया, तो वह उस मार्केट में गश्त लगा रहे दो पुलिस वालों की ओर इशारा
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1 वर्ष पहले