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बुधवार, 14 मार्च 2012

दिल्ली गान के रचयिता सुमित प्रताप सिंह




आदरणीय ब्लॉगर साथियो
सादर ब्लॉगस्ते! 
     पको पता है कि दिल्ली की स्थापना किसने की थीनहीं पताकिताब-विताब नहीं पढ़ते है क्याचलिए चूँकि मैंने इतिहास में एम.ए.किया है, तो कम से कम इतना तो मेरा फ़र्ज़ बनता ही है, कि आप सभी को इतिहास की थोड़ी-बहुत जानकारी दे सकूँ आइए इतिहास के पन्नों की तलाशी लेते हैं महाभारत युद्ध की पृष्ठ भूमि तैयार हो रही है कौरवों ने पांडवों को चालाकी से खांडवप्रस्थ देकर निपटा दिया है कौरवों के अन्याय को सहते हुए पांडवों ने अपने कठिन परिश्रम से खांडवप्रस्थ को इंद्रप्रस्थ बना दिया है इस प्रकार इन्द्रप्रस्थ के रूप में दिल्ली के पहले शहर की स्थापना हो चुकी है महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका है और अश्वत्थामा अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ पर ब्रह्मास्त्र छोड़कर अट्ठाहास कर रहा है, किन्तु जिस पर प्रभु श्री कृष्ण का आशीष हो, तो भला उसका कोई क्या बिगाड़ सकता है श्री कृष्ण के आशीर्वाद से उत्तरा के गर्भ से उत्पन्न मृत बालक जीवित हो उठता है. बालक का नाम रखा जाता है परीक्षित (दूसरे की इच्छा से जीवित होने वाला) आगे बढ़ते हैं मध्यकाल का समय है उन्हीं राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय के वंशज अनंगपाल तोमर के स्वप्न में माता कुंती आती हैं और इंद्रप्रस्थ या कहें दिल्ली को राजधानी बनाकर अपने पूर्वजों का गौरव फिर से लौटाने का उनसे आग्रह करती है आइए वापस आधुनिक काल में  लौट आते हैं उसी तोमर वंश का एक युवा अपने पूर्वजों की कर्मभूमि दिल्ली के लिए दिल्ली गान की रचना करता है जी हाँ मैं बात कर रही हूँ सुमित प्रताप सिंह की सुमित प्रताप सिंह एक छोटे-मोटे हिन्दी ब्लॉगर हैं (मैं उनसे भी छोटी-मोटी हिन्दी ब्लॉगर हूँ) और हाल ही में दैनिक जागरण की "मेरा शहर मेरा गीत" नामक प्रतियोगिता में सुमित प्रताप सिंह का गीत “कुछ खास है मेरी दिल्ली में” चुना गया है और दिल्ली गान बन गया है
   सुमित प्रताप सिंह का जन्म उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में हुआ इनकी प्राथमिक शिक्षा दिल्ली में ही हुई व दिल्ली विश्व विद्यालय से इन्होनें इतिहास से स्नातक किया तथा कॉलेज की पढ़ाई के दौरान ही दिल्ली पुलिस में भर्ती हो गये यह कवि तो बचपन से ही थे, किन्तु पुलिस की कठिन ट्रेनिंग ने इन्हें हास्य कवि बना दिया मई, 2008 से इन्होंने 'सुमित के तड़के' नामक ब्लॉग पर शब्दों के तड़के लगाने आरंभ कर दिये 2012 का साल इनके लिए सौभाग्य लेकर आया और इनका गीत "कुछ ख़ास है मेरी दिल्ली में" दिल्ली गान चुना गया आइए बाकी बचा-खुचा इन्हीं से पूछ लेते है    

संगीता सिंह तोमर- सुमित प्रताप सिंह जी नमस्कार! कैसे हैं आप?

सुमित प्रताप सिंह- नमस्कार कलम घिस्सी जी! मैं ठीक हूँ आप कैसी हैं?
(आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि मेरे ब्लॉग का नाम “कलम घिस्सी” है वैसे आप मुझे इस नाम से संबोधित करें तो कोई दिक्कत नहीं)

संगीता सिंह तोमर- जी आपकी कृपा से बिलकुल ठीक हूँ कुछ प्रश्न लाई हूँ आपके लिए

सुमित प्रताप सिंह- अभी तक तो अपन ही प्रश्नों की पोटली टाँगे फिरते रहते थे अब आपने यह संभाल ली. चलिए जो पूछना है पूछ डालिए
(आखिर छोटी बहन हूँ और इतना समझ सकती हूँ कि भैया जी को भी थकान होती हैं वैसे भी जिस प्रकार डॉक्टर अपना इलाज खुद नहीं कर पाता, उसी प्रकार अपना साक्षात्कार अब ये तो ले नहीं पाते, सो मैंने ही यह ज़िम्मेदारी संभाल ली वैसे भी सुमित भैया की कार्बन कॉपी यानि कि आपकी कलम घिस्सी से बेहतर उनका साक्षात्कार कौन ले पाएगा....खैर आगे बढ़ें?)
संगीता सिंह तोमर- सबसे पहले तो आपको दिल्ली गान लिखने के लिए बधाई आपका गीत दिल्ली गान बन चुका है अब आपको कैसा अनुभव हो रहा है?

सुमित प्रताप सिंह- शुक्रिया कलम घिस्सी बहना मुझे बहुत अच्छा अनुभव हो रहा है मैं अपनी दिल्ली के लिए कुछ कर पाया, इस बात का मुझे संतोष है
(धर्मराज युधिष्ठिर अपने वंशज अनंगपाल तोमर के संग सूरज कुंड में स्नान करते हुए दिल्ली गान गा रहे हैं)

संगीता सिंह तोमर- आप लिखते क्यों हैं? 

सुमित प्रताप सिंह- लोग अक्सर पूछते हैं कि मैं क्यों लिखता हूँ लिखना मेरे जीवन जीने का तरीका है और मैं जीने के लिए लिखता हूँ सोचता हूँ यदि मैं लिखता नहीं होता, तो शायद मैं अब तक नहीं होता अपने जीवन में मिली निराशा और असफलता से जूझने का हथियार है मेरा लेखन मैं विवशता में नहीं लिखता जब मन करता है तो लिखता हूँ और मन लिखने को मना करे तो बिल्कुल नहीं लिखता मैं उस भीड़ का हिस्सा बनने से बचता हूँ, जो बिना बात में निरंतर लिखती रहती है मेरे मन से जब आवाज आती है, तभी मैं लिखता हूँ मुझमें भी छपास की चाहत है, किन्तु यह दीवानगी की हद तक नहीं है मेरे लिखने का मकसद है, कि मेरे लिखने से समाज को कुछ मिले जब समाज मेरे लिखने से कुछ पा सकेगा तभी समझूंगा मैं वाकई में लिखता हूँ
(महाबली भीम अपने पोते परीक्षित के साथ इन्द्रपस्थ किले या कहें कि दिल्ली के पुराने किले के पीछे स्थित प्राचीन भैरव मंदिर में दिल्ली गान गाने में मस्त हैं)

संगीता सिंह तोमर– आपको  ब्लॉग लेखन का रोग कब और कैसे लगा?

सुमित प्रताप सिंह– ब्लॉग लेखन का रोग एक कन्या के माध्यम से लगा आज चार वर्ष होने को हैं वह कन्या तो जाने किस लोक में लोप हो गई, किन्तु मुझ पर यह रोग पूरी तरह अधिकार जमा चुका है
(धनुर्धर अर्जुन अपने पड़पोते जनमेजय के संग इन्द्रप्रस्थ किले की प्राचीर पर खड़े हो अपने बाणों से आकाश में “कुछ खास है मेरी दिल्ली में” लिख रहे हैं)

संगीता सिंह तोमर– आपकी लेखन में सर्वाधिक प्रिय विधा कौन सी है?

सुमित प्रताप सिंह -लेखन में मेरी सर्वाधिक प्रिय विधा व्यंग्य है, किन्तु गीत, कविता व लघुकथा लेखन भी प्रिय विधाएँ हैं, जो कि मेरे हृदय में बसती हैं
(माता कुंती नकुल और सहदेव संग इन्द्रप्रस्थ किले में स्थित कुंती मंदिर में बैठी हुईं दिल्ली गान गुनगुना रही हैं)

संगीता सिंह तोमर– आप अपनी रचनाओं से समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं?

सुमित प्रताप सिंह- संदेशइस देश में भला कोई संदेश पर ध्यान देता है क्या? फिर भी मैं इस कोशिश में रहता हूँ, कि मेरी रचनाओं से समाज को संदेश मिले, कि जीवन छोटा सा है इसलिए इसे हँसते-मुस्काते बिताया जाये समाज में फैली कुरीतियों को सोटा जमाने के लिए अब तो उठ कर खड़ा हो लिया जाए हर इंसान एक बात सोचे, कि उसने इस देश व समाज से जितना लिया है, कम से कम उसका 10 प्रतिशत तो लौटाने का प्रयास करें
(तोमर वंश के कुल देवता श्री कृष्ण अपनी बांसुरी पर दिल्ली गान की धुन बजा रहे हैं अरे देखिए उनके साथ आकाश में तोमरों के सभी पूर्वज एकत्र हो, अपने वंशज सुमित प्रताप सिंह को अपना आशीष दे रहे हैं)

संगीता सिंह तोमर– एक अंतिम प्रश्न “क्या हिंदी कभी विश्व की बिंदी बनेगी?

सुमित प्रताप सिंह- हिंदी अवश्य ही विश्व की बिंदी बनेगी और एक न एक दिन स्वाभिमान से तनेगी हम सभी हिंदीपूत ब्लॉगर तब तक चैन से नहीं बैठेंगे जब तक इसे इसका हक न दिला दें .....जय हिंद, जय हिंदी और जय दिल्ली!

(इतना कहकर सुमित प्रताप सिंह दिल्ली गान "कुछ ख़ास है मेरी दिल्ली में" गाने लगे और मैं भी उनके साथ सुर में सुर मिलाने लगी)
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