चित्र गूगल बाबा से साभार |
लंच की घंटी बजी, रमा ने सुरभि से पूछा आज टिफिन में क्या लाई है?
सुरभि ने मुँह बनाकर कहा,"क्या होगा टिफिन में,वही रोज की तरह मम्मी ने घास-फूस रखा होगा. यार ऐसा खाना खाते-खाते मेरी तो भूख ही मर गई है, पता नहीं लोग इसे खा कैसे लेते हैं? चल हम दोनों कैंटीन में जाकर कुछ खाते है."
रमा ने कहा," सुरभि फिर इस खाने का क्या करेगी?"
सुरभि बोली,"अरे वही जो रोज करती हूँ, स्कूल के पीछे वाले गेट से बाहर फेंक दूंगी."
रमा बोली,"ठीक है तू तब तक इसे फेंककर आ, मैं तुझे कैंटीन में ही मिलती हूँ."
सुरभि अपना टिफिन लेकर उसी जगह पहुँच गई जहाँ वह अपना खाना अक्सर फेंका करती थी. उसने देखा कि गेट के पास एक फटेहाल लड़की एक ईंट के ऊपर बैठी हुई है, वह लड़की सुरभि को देखकर कुछ झेंप गई. उसके हाव-भाव को देख सुरभि के मन में कुछ संदेह हुआ कि अवश्य ही यह कुछ छुपा रही है, हो न हो इसने कुछ चोरी की है. सुरभि चुपचाप वहां से वापस चल दी और वही थोड़ी दूर जाकर एक दीवार के पीछे छिप गई. उस लड़की ने सुरभि के जाते ही उस ईंट को उठाया जिस पर वह बैठी हुई थी और एक मिट्टी से सनी हुई रोटी निकाली, उसे अच्छी तरह झाड़ा और खाने लगी.सुरभि ने यह सब देखा तो उसकी आत्मा काँप उठी, यह वही रोटी थी जिसे उसने कल अपने टिफिन में से निकालकर फेंका था.
सुरभि नम आँखें लिए अपना टिफिन लेकर लंच करने अपनी कक्षा की ओर चल दी, उसे बहुत तेज भूख लग आई थी.
सच कभी कभी इतना ही मार्मिक होता है..समाज को आइना दिखाती लघुकथा.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शिखा जी.
हटाएंगरीबी बड़ों बड़ों की मिट्टी झाड़ देती है...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद Kautsa Shri जी.
हटाएंअन्दर एक ऐंठन सी हुई ...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रश्मि आंटी जी.
हटाएंचीरती हुई... ...
जवाब देंहटाएंलघुकथा नहीं भारत समेत दुनिया के सबसे बड़े हिस्से की वृहत् कथा... ...
धन्यवाद चंदन कुमार मिश्र जी.
हटाएंकुछ यादें ताज़ा हो गई ... बचपन में ही भूख और रोटी की कीमत समझ गया था ... कुछ कुछ ऐसा ही दृश्य था !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शिवम भैया .
हटाएंpata nahi kya karna chahiye...
जवाब देंहटाएंpar kuch to karna hi padega...
धन्यवाद सुमुख बंसल जी.
हटाएंबहुत ही मार्मिक एवं बेहद भावपूर्ण संदेश मयी प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद पल्लवी जी.
हटाएंbehad marmik.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद कविता जी.
हटाएंयह कितनी सच्ची कहानी है ... बच्चे आजकल ऐसा ही करते हैं...लेकिन कितना दुखद भी है कही अन्न की बर्बादी और कही भूखे को भोजन नसीब नहीं ...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद डॉ.नूतन जी.
हटाएंबहुत ही भावुक रचना ...
जवाब देंहटाएंइसे प्रभु की इच्छा कहे या कर्मो का फल, कि किसी के पास इतना है कि खाने में choise ढूँढता है, और किसी के पास कोई choise ही नहीं होती.
धन्यवाद धैर्य प्रताप जी.
हटाएं्रोटी की कीमत समझा दी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद वन्दना जी.
हटाएंसमाज को विशेषकर आज के बच्चों को जिंदगी के कड़वे सच से सामना करवाती अत्यंत भावपूर्ण कहानी। बधाई
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मुनमुन भैया .
हटाएंमन को व्यथित कर जाता है ये सब ... पर गहन सच्चाई भी है इसमें ...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सदा जी.
हटाएंदुखद है ..मगर हमारे समाज की कटु सच्चाई है..
जवाब देंहटाएं:-(
सार्थक रचना..
धन्यवाद विद्या जी.
हटाएंकटु सत्य को कहती संवेदनशील कथा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संगीता स्वरूप जी.
हटाएंआंखे नम कर देनी वाली लघु कथा।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद लोकेन्द्र भैया.
हटाएंकडवा सच
जवाब देंहटाएंधन्यवाद यशवंत जी.
हटाएंआह!!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संजय मिश्रा जी.
हटाएंसमाज की कटु सच्चाई
जवाब देंहटाएंधन्यवाद कुश्वंश जी.
हटाएंBhojan aur bhajan dono ka anadar kabhi nahi Karna chayote...yahi laghukatha saman ki is vidroopta ko darshata hai jahan jinhe khane ko milta wo uska mol nahi samajhte aur Jo samajhte unhe khane ko hi nahi milta....bahut hi prabhawi.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद विजय रंजन जी.
हटाएंबहुत सुन्दर लघुकथा |
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जय कृष्ण जी.
हटाएंदिल में गहरे उतर गयी आपकी ये कहानी ...
जवाब देंहटाएंbahut sudar hai man ko chhu gayi
हटाएंधन्यवाद दिगम्बर जी व ममता जी.
हटाएंबहुत खूब लिखा है
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट पर आपका स्वागत है !
सबसे पहले दक्ष को जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनायें.!!
Active Life Blog
धन्यवाद सवाई सिंह राजपुरोहित जी.
हटाएंहृदयस्पर्शी कथा.....
जवाब देंहटाएंधन्यवाद डॉ.मोनिका शर्मा जी.
जवाब देंहटाएंआपका ब्लॉग पर आकार मेरे भतीजे दक्ष को जन्मदिन पर शुभकामनाएं और बधाई दी उसके लिए आभार
जवाब देंहटाएं" सवाई सिंह "
मित्रवर संगीता तोमरीजी
जवाब देंहटाएंआप से निवेदन है कि
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( सामूहिक ब्लॉग) से खुद भी जुड़ें और अपने मित्रों को भी जोड़ें... शुक्रिया
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जवाब देंहटाएं" Ek Blog Sabka "
भाई साहब यही तो हमारे दौर की बदनसीबी है -स्वानों को मिलता धवल दूध ,भूखे बच्चे अकुलाते हैं ९%
जवाब देंहटाएंआर्थिक वृद्धि केइस दौर में यह विक्षोभ और भी प्रासंगिक है .विचलित करती है यह कथा .
धन्यवाद वीरुभाई जी.
हटाएंअंतस को झकझोरती बहुत मार्मिक लघु कथा....
जवाब देंहटाएंधन्यवाद कैलाश शर्मा जी.
हटाएंऊफ्फ ..
जवाब देंहटाएंऐसा सच न होता !!!!
धन्यवाद संगीता पुरी जी.
हटाएंआप ने बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति दी है जो हमारे आज की विकराल रूप लेती समस्या को प्रतिबिंबित करती है.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद भाभी जी.
हटाएंआपकी प्रस्तुति आज के समाज की मार्मिक छवि प्रस्तुत कर रही है.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद भाभी जी.
हटाएंउसे बहुत तेज भूख लग आई थी............ हृदयस्पर्शी वृहद्द संदेश देती एक लघु कथा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद प्रिंस जी.
जवाब देंहटाएंयथार्थ दिखाती कथा
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