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गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

भूख (लघु कथा)

चित्र गूगल बाबा से साभार
     लंच की घंटी बजी,   रमा ने सुरभि  से पूछा आज टिफिन में क्या लाई है? 
सुरभि ने मुँह बनाकर कहा,"क्या होगा टिफिन में,वही रोज की तरह मम्मी ने घास-फूस रखा होगा. यार ऐसा खाना खाते-खाते मेरी तो भूख ही मर गई है, पता नहीं लोग इसे खा कैसे लेते हैं? चल हम दोनों कैंटीन में जाकर कुछ खाते है."
 रमा   ने कहा," सुरभि  फिर इस खाने का क्या करेगी?"
सुरभि बोली,"अरे वही जो रोज करती हूँ, स्कूल के पीछे वाले गेट से बाहर फेंक दूंगी."
 रमा  बोली,"ठीक है तू तब तक इसे फेंककर आ, मैं तुझे कैंटीन में ही मिलती हूँ."
    सुरभि  अपना टिफिन लेकर उसी जगह पहुँच गई जहाँ वह अपना खाना अक्सर फेंका करती थी. उसने देखा कि गेट के पास एक फटेहाल लड़की एक ईंट के ऊपर बैठी हुई है, वह लड़की सुरभि  को देखकर कुछ झेंप गई. उसके हाव-भाव को देख  सुरभि  के मन में कुछ संदेह हुआ कि अवश्य ही यह कुछ छुपा रही है, हो न हो इसने कुछ चोरी की है. सुरभि  चुपचाप वहां से वापस चल दी और वही थोड़ी दूर जाकर एक दीवार के पीछे छिप गई. उस लड़की ने सुरभि के जाते ही उस  ईंट को उठाया जिस पर वह बैठी हुई थी और एक मिट्टी से सनी हुई रोटी निकाली, उसे अच्छी तरह झाड़ा और खाने लगी.सुरभि ने यह सब देखा तो उसकी आत्मा काँप उठी, यह वही  रोटी  थी जिसे उसने कल अपने टिफिन में से निकालकर फेंका था.

सुरभि  नम आँखें लिए अपना टिफिन लेकर लंच करने अपनी कक्षा की ओर चल दी, उसे बहुत तेज भूख लग आई थी.   

65 टिप्‍पणियां:

  1. सच कभी कभी इतना ही मार्मिक होता है..समाज को आइना दिखाती लघुकथा.

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  2. गरीबी बड़ों बड़ों की मिट्टी झाड़ देती है...

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  3. चीरती हुई... ...
    लघुकथा नहीं भारत समेत दुनिया के सबसे बड़े हिस्से की वृहत् कथा... ...

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  4. कुछ यादें ताज़ा हो गई ... बचपन में ही भूख और रोटी की कीमत समझ गया था ... कुछ कुछ ऐसा ही दृश्य था !

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  5. बहुत ही मार्मिक एवं बेहद भावपूर्ण संदेश मयी प्रस्तुति...

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  6. यह कितनी सच्ची कहानी है ... बच्चे आजकल ऐसा ही करते हैं...लेकिन कितना दुखद भी है कही अन्न की बर्बादी और कही भूखे को भोजन नसीब नहीं ...

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  7. बहुत ही भावुक रचना ...
    इसे प्रभु की इच्छा कहे या कर्मो का फल, कि किसी के पास इतना है कि खाने में choise ढूँढता है, और किसी के पास कोई choise ही नहीं होती.

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  8. समाज को विशेषकर आज के बच्‍चों को जिंदगी के कड़वे सच से सामना करवाती अत्‍यंत भावपूर्ण कहानी। बधाई

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  9. मन को व्‍यथित कर जाता है ये सब ... पर गहन सच्‍चाई भी है इसमें ...

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  10. दुखद है ..मगर हमारे समाज की कटु सच्चाई है..
    :-(

    सार्थक रचना..

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  11. Bhojan aur bhajan dono ka anadar kabhi nahi Karna chayote...yahi laghukatha saman ki is vidroopta ko darshata hai jahan jinhe khane ko milta wo uska mol nahi samajhte aur Jo samajhte unhe khane ko hi nahi milta....bahut hi prabhawi.

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  12. दिल में गहरे उतर गयी आपकी ये कहानी ...

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  13. आपका ब्लॉग पर आकार मेरे भतीजे दक्ष को जन्मदिन पर शुभकामनाएं और बधाई दी उसके लिए आभार

    " सवाई सिंह "

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  14. मित्रवर संगीता तोमरीजी
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  15. भाई साहब यही तो हमारे दौर की बदनसीबी है -स्वानों को मिलता धवल दूध ,भूखे बच्चे अकुलाते हैं ९%
    आर्थिक वृद्धि केइस दौर में यह विक्षोभ और भी प्रासंगिक है .विचलित करती है यह कथा .

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  16. अंतस को झकझोरती बहुत मार्मिक लघु कथा....

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  17. आप ने बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति दी है जो हमारे आज की विकराल रूप लेती समस्या को प्रतिबिंबित करती है.

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  18. आपकी प्रस्तुति आज के समाज की मार्मिक छवि प्रस्तुत कर रही है.

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  19. उसे बहुत तेज भूख लग आई थी............ हृदयस्पर्शी वृहद्द संदेश देती एक लघु कथा

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